प्रयागराज के बारे में

प्रयागराज ने भारतीय इतिहास में कई बदलावों को देखा है। यह स्थान सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि सभी धर्मों का केंद्र रहा है। चार महाकुंभ स्थानों में से प्रयागराज भी शामिल है। यह स्थान पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम स्थल है।

प्रयागराज, यूपी के सबसे बड़े जिलों में से एक है। यह स्थान पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम स्थल है। प्रयागराज को तीर्थराज और त्रिवेणी भी कहा जाता है। यह स्थान हिंदू धर्म में प्रमुख माना जाता है। इतिहासकारों की मानें, तो आर्यों ने प्रयाग की प्रारंभिक बस्तियों को स्थापित करने का काम किया था। वैसे तो प्रयागराज ने भारतीय इतिहास में कई बदलावों को देखा है। यह स्थान सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि सभी धर्मों का केंद्र रहा है। चार महाकुंभ स्थानों में से प्रयागराज भी शामिल है। बता दें कि साल 2018 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद का नाम बदलकर इसे प्रयागराज कर दिया।

प्रयागराज का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि कार्य पूरा करने के बाद ब्रह्माजी ने पहला यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ से प्र और याग यानी प्रयाग बना। इसी पवित्र स्थान पर ऋषि दुर्वासा, ऋषि भारद्वाज और ऋषि पन्ना को ज्ञान प्राप्त हुआ था। करीब 5000 ईसा पूर्व यहां पर ऋषि भारद्वाज ने 10,000 से अधिक शिष्यों को पढ़ाया था। वहीं तुलसीदास की रामचरित मानस और बाल्मीकि की रामायण में भी प्रयाग का उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही मत्यस्य पुराण के अध्याय 102 से लेकर 107 तक प्रयाग के बारे में दिया गया है।

साल 1557 में मुगल सम्राट अकबर ने इलाहाबाद नाम के शहर की स्थापना की। जिसका अर्थ 'अल्लाह का नगर' होता है। वहीं मध्यकाल में प्रयागराज धार्मिक और सांस्कृतिक का केंद्र था। यह कई सालों तक मुगलों की प्रांतीय राजधानी भी रही है। जिसके बाद यहां पर मराठाओं ने अपना कब्जा जमा लिया था। वहीं अवध के नवाब ने साल 1801 में इस शहर को ब्रिटिश शासन के अधिकार में सौंप दिया था। फिर साल 1857 में यह जगह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का गढ़ बन गया। जिसके बाद साल 1858 में प्रयागराज का नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया गया। साथ ही इसको आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बना दिया गया।

इसके बाद साल 1868 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना की गई। इसके बाद साल 1867 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई। प्रयागराज में मौजूद आनंद भवन भारतीय स्वतंत्रता का प्रमुख केंद्र था। प्रयागराज ने अब तक देश को चार प्रधानमंत्री रहे। जिनमें से जवाहर लाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और वीपी सिंह शामिल हैं।

प्रयागराज की विरासत
ब्रिटिश सरकार ने लंबे समय तक भारत में शासन किया था। साल 1857 की क्रांति से लेकर स्वतंत्रता तक में प्रयागराज प्रमुख केंद्र रहा है। ब्रिटिश सरकार ने प्रयागराज में बेहतरीन इमारतों का निर्माण कराया था। प्रयागराज में अंग्रेजों द्वारा बनवाई गई इमारतों की बनावट पश्चिमी वास्तुकला से प्रेरित थी। प्रयागराज में चर्च, शिक्षण संस्थान, महल और प्रशासनिक भवन आदि की वास्तुकला पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित है। 

पर्व
बता दें कि प्रयागराज में हर साल जनवरी-मरवरी के महीने में माघ के मेले का आयोजन होता है। इस दौरान माघ के मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाते हैं। माघ मेले में प्रशासन की तरफ से उचित व्यवस्थाएं की जाती हैं। वहीं प्रयागराज में कुंभ का भी भव्य तरीके से आयोजन होता है। पौराणिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान श्रीहरि विष्णु अमृत कलश को असुरों से दूर लेकर जा रहे थे, तो छीना-झपटी में अमृत की चार बूंदे धरती पर गिरी थीं। अमृत की चार बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं।

ऐसे में इन चारों जगहों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं के रुकने की उचित व्यवस्था की जाती है। श्रद्धालुओं के लिए जगह-जगह पर टेंट और लंगर का आयोजन किया जाता है। महाकुंभ के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों से साधु-संत प्रयागराज पहुंचते हैं।

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