हर 12 साल के बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ मेले का इतिहास करीब 850 साल पुराना है। यह दुनिया का सबसे बड़ा, धार्मिक, सांस्कृतिक और पवित्र मेला है, जोकि पूरे 45 दिनों तक चलता रहता है।
हर 12 साल के बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ मेले का इतिहास करीब 850 साल पुराना है। यह दुनिया का सबसे बड़ा, धार्मिक, सांस्कृतिक और पवित्र मेला है, जोकि पूरे 45 दिनों तक चलता रहता है। माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इसकी शुरूआत की थी। लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय से ही कुंभ मेले की शुरूआत हो गई थी। धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक पृथ्वी का एक साल देवताओं के एक दिन के बराबर होता है। इसलिए हर 12 साल पर एक बार कुंभ का आयोजन किया जाता है। वहीं देवताओं के 12 साल धरती के 144 साल के बाद आता है। माना जाता है कि 144 साल बाद स्वर्ग में भी कुंभ का आयोजन होता है। इसलिए उसी साल धरती पर भी कुंभ का आयोजन किया जाता है। प्रयागराज को महाकुंभ के लिए निर्धारित स्थान माना गया है।
कब लगेगा कुंभ मेला
मेष राशि गते जीवे मकरे चन्द्र भास्करौ।
अमावस्या तदा योगः कुम्भख्यस्तीर्थ नायके॥
इसका अर्थ है कि जब मकर राशि में मेष राशि के चक्र में बृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा का प्रवेश होता है, तो प्रयागराज में अमावस्या के दिन कुंभ का आयोजिन किया जाता है। बता दें कि साल 2013 में पूर्ण कुंभ मेला लगा था। अब अगला कुंभ मेला साल 2025 में लगेगा। महाकुंभ के लिए 09 अप्रैल से लेकर 08 मई 2025 की तारीख निर्धारित की गई है
स्नान की तारीखें
बता दें कि 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा से महाकुंभ का स्नान शुरू होगा। वहीं 14 जनवरी 2025 यानी मकर संक्रांति के मौके पर शाही स्नान, 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या पर शाही स्नान, 03 फरवरी यानी वसंत पंचमी को आखिरी शाही स्नान होगा। फिर 04 फरवरी को अचला सप्तमी, 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा और 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के मौके पर आखिरी स्नान पर्व होगा। इस तरह से पूरे 45 दिनों तक महाकुंभ होगा। जिसमें से 21 दिनों में शाही स्नान पूरे होंगे।
कुंभ मेलों के प्रकार
महाकुंभ मेला
हर 12 साल बाद प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होता है। यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 साल बाद पूर्ण महाकुंभ होता है।
पूर्ण कुंभ मेला
पूर्ण कुंभ हर 12 साल बाद आता है। इसका आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन यानी की 4 जगह पर आयोजित किया जाता है। 12 साल के अंतराल पर इस कुंभ मेले का आयोजन बारी-बारी से होता है।
अर्ध कुंभ मेला
अर्ध कुंभ मेला साल में दो बार यानी की 6-6 महीने पर हरिद्वार और प्रयागराज में होता है।
कुंभ मेला
हर तीन साल में चार अलग-अलग स्थानों पर इस मेले का आयोजन किया जाता है।
माघ कुंभ मेला
हर साल माघ के महीने में प्रयागराज में माघ कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
ऐसे निर्धारित होती है कुंभ मेले की तिथि
तिथि, ग्रहों और राशियों पर निर्भर करता है कि कब और किस स्थान पर कुंभ का आयोजन किया जाएगा। सूर्य और बृहस्पति को कुंभ मेले को काफी अहम माना जाता है। जब बृहस्पति और सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करते हैं, तो कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। ठीक इसी तरह से कुंभ मेला कहां किया जाएगा, यह भी निर्धारित किया जाता है।
जब बृहस्पति वृष राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तब प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
वहीं जब मेष राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं और कुंभ राशि में बृहस्पति प्रवेश करते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
जब सिंह राशि में सूर्य और बृहस्पति प्रवेश करते हैं, तो नासिक में महाकुंभ आयोजित होता है।
इसके साथ ही जब सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं, तो उज्जैन में कुंभ का आयोजन किया जाता है।
कुंभ के लिए अहम होते हैं ये ग्रह
कुंभ के लिए नवग्रहों में सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि की भूमिका अहम होती है। बताया जाता है कि जब देवताओं और असुरों में अमृत कलश को लेकर युद्ध हुआ, तो चंद्रमा ने अमृत कलश को खींचतान में गिरने से बचाया था। वहीं गुरु ने अमृत कलश को छिपाया और सूर्य ने इस अमृत कलश को फूटने से बचाया। वहीं शनि ने इंद्र के कोप से अमृत कलश की रक्षा की थी।
जानिए पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार दुर्वासा ऋषि ने देवताओं को श्राप दे दिया था। जिसके कारण देवराज इंद्र और देवतागण कमजोर पड़ गए। इसी मौके का फायदा उठाकर असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर उनको हरा दिया। तब श्रीहरि विष्णु ने देवताओं और असुरों से समुद्र मंथन कर अमृत निकालने के लिए कहा। जब असुरों और देवताओं ने समुद्र से अमृत कलश निकाला तो देवताओं के इशारे पर देवराज इंद्र का पुत्र जयंत इस कलश को लेकर उड़ गया। यह देख असुरों ने जयंत का पीछाकर उसे पकड़ लिया।
इसके बाद अमृत कलश पर असुर अधिकार जताने लगे। अमृत कलश को पाने के लिए असुरों और देवताओं के बीच पूरे 12 दिनों तक युद्ध चलता रहा। युद्ध के दौरान अमृत कलश की कुछ बूदें धरती के चार स्थानों पर गिरी। जिसमें से पहली बूंद प्रयागराज, दूसरी बूंद हरिद्वार, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी अमृत की बूंद नासिक में गिरी। अमृत गिरने के कारण इन चारों की स्थान को बेहद पवित्र माना जाता है और इन्हीं स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। क्योंकि अमृत कलश के लिए देवताओं ने 12 दिनों तक युद्ध किया था। देवताओं के 12 दिन धरती के 12 साल के बराबर होते हैं। इसलिए हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।